इंडियन सुपर लीग की अनिश्चितता के बीच सुनील छेत्री का शांति का आह्वान

- Khabar Editor
- 16 Jul, 2025
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भारतीय राष्ट्रीय फुटबॉल टीम और बेंगलुरु एफसी दोनों के सम्मानित कप्तान और समकालीन युग में भारतीय फुटबॉल के प्रमुख प्रतीक के रूप में व्यापक रूप से पहचाने जाने वाले सुनील छेत्री ने हाल ही में इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) को लेकर बढ़ती अनिश्चितता पर अपनी चुप्पी तोड़ी है। एक मार्मिक और व्यापक बयान में, छेत्री ने भारतीय फुटबॉल जगत के सभी हितधारकों, समर्पित प्रशंसकों से लेकर क्लबों के प्रत्येक सदस्य तक - खिलाड़ियों, महत्वपूर्ण सहयोगी कर्मचारियों और यहाँ तक कि अक्सर गुमनाम रहने वाले किटमैन तक - से इस अशांत अवधि के दौरान संयम बनाए रखने और धैर्य रखने का आग्रह किया।
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I. अनिश्चितता की उत्पत्ति और छेत्री की प्रारंभिक प्रतिक्रिया
वर्तमान आशंका आगामी आईएसएल सीज़न के अनिश्चितकालीन स्थगन से उपजी है, जो अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) और फुटबॉल स्पोर्ट्स डेवलपमेंट लिमिटेड (एफएसडीएल) के बीच चल रहे कानूनी विवाद और व्यापक चर्चा का सीधा परिणाम है। छेत्री ने इस खबर पर अपनी शुरुआती व्यक्तिगत प्रतिक्रिया खुलकर साझा की, जो क्षणिक राहत से लेकर गहरी चिंता में बदल गई:
शुरुआती हल्कापन: छेत्री ने स्वीकार किया कि प्री-सीज़न की तैयारियों में "पखवाड़े भर की देरी" के बारे में पहली बार जानने पर, उन्हें एक पल के लिए मनोरंजन मिला। छुट्टी पर होने और अपनी फिटनेस दिनचर्या का सख्ती से पालन न करने के कारण, इस देरी ने उन्हें अपनी शारीरिक स्थिति को फिर से बेहतर बनाने का एक अप्रत्याशित अवसर प्रदान किया।
गहरी चिंता में बदलाव: हालाँकि, जैसे ही शुरुआती दो हफ़्ते की देरी "अनिश्चितकालीन" स्थगन में बदल गई, छेत्री का स्वभाव नाटकीय रूप से बदल गया। उन्होंने एक व्यक्तिगत आशंका को स्वीकार किया, खासकर अपने शानदार करियर के उस पड़ाव को देखते हुए जहाँ मैदान पर बिताया गया समय बेहद कीमती होता जा रहा है।
एक बड़े संकट की पहचान: जैसे-जैसे उन्होंने विभिन्न क्लबों के साथी खिलाड़ियों से बात की, उनकी यह व्यक्तिगत चिंता तेज़ी से बढ़ती गई। उन्होंने महसूस किया कि उनकी व्यक्तिगत चिंताएँ पूरे भारतीय फ़ुटबॉल जगत में व्याप्त सामूहिक चिंता के सामने फीकी पड़ गईं। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह समस्या उनके पेशेवर जीवन से कहीं आगे तक फैली हुई है।
संदेशों की बाढ़: छेत्री ने आगे बताया कि उन्हें भारतीय फ़ुटबॉल जगत के कई लोगों के संदेशों की बाढ़ आ गई है, जो समुदाय में इसके व्यापक प्रभाव और गहरी चिंता को रेखांकित करता है।
II. छेत्री की धैर्य और विश्वास की अपील
स्पष्ट चिंता के बावजूद, छेत्री ने आशा का संदेश दिया और गतिरोध को हल करने के लिए एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण की वकालत की। उनकी अपील दो प्रमुख पहलुओं पर केंद्रित थी:
शांति और धैर्य का आह्वान: उन्होंने प्रशंसकों और सभी क्लब कर्मियों से स्पष्ट रूप से शांत रहने का आग्रह किया और इस चुनौतीपूर्ण दौर से निपटने में स्थिर व्यवहार के महत्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अधिकारियों द्वारा समाधान की दिशा में काम करते समय धैर्य सर्वोपरि है।
शासी निकायों में विश्वास की अभिव्यक्ति: छेत्री ने "थिंक टैंक" और खेल के प्रशासन से जुड़ी सभी संस्थाओं के अथक प्रयासों में अपना विश्वास व्यक्त किया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि एआईएफएफ और एफएसडीएल शीघ्र ही एक "ठोस समाधान" खोजने के लिए सक्रिय रूप से प्रयासरत हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भारतीय फुटबॉल को कोई दीर्घकालिक झटका न लगे और यह अपनी प्रगतिशील राह पर बना रहे।
III. आईएसएल को प्रभावित करने वाले अंतर्निहित मुद्दे
आईएसएल की वर्तमान दुर्दशा एआईएफएफ और एफएसडीएल के बीच एक जटिल कानूनी और व्यावसायिक उलझन में निहित है।
व्यावसायिक समझौता:
मास्टर राइट्स समझौता (एमआरए): इस विवाद का मूल एआईएफएफ और एफएसडीएल के बीच 2010 में हस्ताक्षरित 15-वर्षीय मास्टर राइट्स समझौते में निहित है। यह समझौता एफएसडीएल को अत्यधिक लोकप्रिय आईएसएल सहित भारतीय फुटबॉल के प्रबंधन और विपणन के व्यापक अधिकार प्रदान करता है।
वार्षिक भुगतान: इस मौजूदा एमआरए के तहत, एफएसडीएल एआईएफएफ को ₹50 करोड़ का वार्षिक भुगतान प्रदान करता है। यह वित्तीय योगदान एआईएफएफ के संचालन व्यय और भारतीय फुटबॉल में विकासात्मक पहलों के लिए महत्वपूर्ण है।
समाप्ति तिथि: वर्तमान एमआरए 8 दिसंबर, 2025 को समाप्त होने वाला है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह तिथि सामान्य आईएसएल सीज़न के ठीक पहले आती है, जो आमतौर पर सितंबर में शुरू होता है।
कानूनी गतिरोध और सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप:
चल रही कानूनी समीक्षा: आईएसएल का भविष्य सीधे तौर पर सर्वोच्च न्यायालय के आने वाले फैसले पर निर्भर करता है। सीज़न की योजना में देरी एफएसडीएल के साथ एआईएफएफ के वाणिज्यिक समझौते की चल रही कानूनी समीक्षा का सीधा परिणाम है।
न्यायालय का निर्देश: सर्वोच्च न्यायालय ने एआईएफएफ को स्पष्ट निर्देश दिया है कि वह एआईएफएफ के मसौदा संविधान से संबंधित मामले में अपना फैसला सुनाए जाने तक एफएसडीएल के साथ एमआरए की किसी भी नई शर्तों या विस्तार को अंतिम रूप न दे। इस कानूनी निर्देश ने सभी नवीनीकरण वार्ताओं को प्रभावी रूप से स्थगित कर दिया है।
एफएसडीएल का रुख और प्रस्ताव:
योजना बनाने में असमर्थता: एफएसडीएल ने आईएसएल क्लबों को सूचित किया है कि दिसंबर 2025 के बाद स्पष्ट अनुबंधात्मक ढाँचे के बिना, वह आगामी 2025-26 आईएसएल सीज़न की प्रभावी योजना, आयोजन या व्यावसायीकरण करने में असमर्थ है। दीर्घकालिक स्पष्टता की कमी के कारण सीज़न को स्थगित करने का निर्णय लिया गया है।
प्रस्तावित नई होल्डिंग कंपनी: आगे बढ़ने के संभावित रास्ते के रूप में, एफएसडीएल ने आईएसएल के प्रबंधन के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन की गई एक नई होल्डिंग कंपनी के निर्माण का प्रस्ताव रखा है। इस प्रस्तावित संरचना में स्वामित्व का वितरण शामिल है:
60% स्वामित्व: भाग लेने वाले आईएसएल क्लबों को।
26% स्वामित्व: एफएसडीएल द्वारा बरकरार रखा गया।
14% स्वामित्व: एआईएफएफ को आवंटित।
वर्तमान स्थिति: यह प्रस्ताव संबंधित पक्षों के बीच सक्रिय चर्चा के अधीन है, जो लीग के संचालन और स्वामित्व में संभावित संरचनात्मक बदलाव का संकेत देता है।
IV. एआईएफएफ की प्रतिबद्धता और आगे का रास्ता
अनिश्चितता और कानूनी बाधाओं के बावजूद, एआईएफएफ ने सभी हितधारकों को आश्वस्त करने का प्रयास किया है:
निरंतरता के प्रति प्रतिबद्धता: एआईएफएफ ने क्लबों, खिलाड़ियों, सहयोगी कर्मचारियों, अधिकारियों और प्रशंसकों सहित संपूर्ण भारतीय फुटबॉल परिदृश्य के लिए आईएसएल के महत्वपूर्ण महत्व को स्वीकार किया है। उन्होंने लीग की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करने की अपनी प्रतिबद्धता सार्वजनिक रूप से व्यक्त की है।
कानून का सम्मान: चुनौतियों को स्वीकार करते हुए, एआईएफएफ ने कानून के शासन और भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों के प्रति अपने सम्मान पर भी ज़ोर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतज़ार: अंततः, इंडियन सुपर लीग के 2025-26 सीज़न का समाधान और आगे का रास्ता काफी हद तक एआईएफएफ के मसौदा संविधान और उसके परिणामस्वरूप मास्टर राइट्स समझौते के भविष्य पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगा। सभी पक्ष समाधान की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं, लेकिन अंतिम फैसला न्यायपालिका के पास है।
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